शुक्रवार, 25 फ़रवरी 2011

हर साख पे उल्लू बैठा है--------

मेरे एक एक्ज़ाम में Absent आने की वजह से मुझे यूनिवर्सिटी में जाकर यह पता

करना था कि दोबारा एक्ज़ाम देने के लिए मुझे क्या करना होगा| वहाँ

inquiry पर गया तो देखा की, वह खिड़की तो बंद है, और हमेशा बंद रहती है

| फिर जैसे तैसे मैने किसी से पता किया तो मुझे प्रोसीजर का पता चला|

मैने बॅंक में फीस जमा कराई एवं पुनः परीक्षा के लिए एक प्रार्थना पत्र

लिखकर फीस रसीद के साथ यूनिवर्सिटी में जमा करा दी और एक्ज़ाम की डेट आने

का इंतज़ार किया | अब ये मेरा दुर्भाग्य देखो या यूनिवर्सिटी की ग़लती की

जो डेट शीट इंटरनेट पर यूनिवर्सिटी द्वारा डाली उसमे मेरे सब्जेक्ट का

कहीं भी ज़िक्रनही था | और जब मैने यूनिवर्सिटी में पता किया तो उन्होने

बताया कि आपका एक्ज़ाम तो हो चुका है| इस तरह यूनिवर्सिटी की ग़लती कहिए

या मेरा दुर्भाग्य, मेरे उस एक्ज़ाम में दोबारा Absent आ गई | अब क्या

हो सकता था ? अब क्योंकि मेरे बाकी सभी सब्जेक्ट में सही नंबर थे और

मुझे लगने लगा की मुझे ये सारे एक्ज़ाम दोबाज देने पड़ेंगे, इससे मैं

काफ़ी दुखी सा दिख रहा था, तभी एक व्यक्ति मुझसे टकराया, उसने मुझे

बुलाया और कहा की मैं आपका एक्ज़ाम करा सकता हूँ उसके लिए आपको कुछ खर्च

करना पड़ेगा | मुझे तो अपना एक्ज़ाम कराना था तो मैने उससे पूछा की मुझे

क्या खर्च करना पड़ेगा | उसने बताया कि आपको ३००० रुपये देने होंगे |

मैने उससे कहा तो वो २५०० मे पेपर करवाने मे राज़ी हो गया | मेरे पास उस

समय जीतने पैसे थे मैने उसे दे दिए, उसने बताया की डेट अपने आप आपको

पेपर के द्वारा पता चल जाएगी | लेकिन दूसरी बार भी वही हुआ की इंटरनेट

पर कोई जानकारी नही दी गई | मैने ही लगातार कॉलेज में पता करके डेट का

पता निकाला, और मैं एक्ज़ाम देने चला गया | अब एक्ज़ाम के बाद नई

अंकतालिका बनवाने की बारी थी | मुझे बताया गया था की मेरी अंकतालिका अपने

आप त्यार हो जाएगी और मुझे खुद जाकर यूनिवर्सिटी से लानी होगी | लेकिन जब

मैं यूनिवर्सिटी गया तो वहाँ पर फिर

से मुझे रजिस्टर में अनुपस्थिति दिखी और मैने अपने नंबर के लिए पूछा | तो

ढूँढने पर एक लिफ़ाफ़ा निकला जो शायद कॉलेज द्वारा एक्ज़ाम के महीने में

ही भेज दिया गया था लेकिन यूनिवर्सिटी वालो ने उसे खोलना ज़रूरी नही समझा

| और मुझे वो शीट दे दी की अपने नंबर मारक्शीट पर प्रिंट करा लो | अब

मारक्शीट के चक्कर में मैं उनके कंप्यूटर सेंटर पर गया तो पता चला की वो

३ दिन के लिए बंद है | फिर मैने सोचा चलो फिर अपनी डिग्री ही निकलवा ली

जाए | मैने उसका प्रोसीजर पता किया और एक फॉर्म बॅंक से लेकर उसे वेरिफाइ

कराने के लिए गया, तो १२:४५ पर ही उनका लंच हो गया, उन्होने बताया की

लंच २.१५ पर ख़त्म होगा | मैने २.१५ का इंतज़ार किया लेकिन वो सरकारी

आदमी २.३० बजे तक अपनी सीट पर आ कर बैठे, मैने कहासर अब तो वेरिफाइ कर

दो, तो साहब कहते हैं की आधा घंटा रूको | मुजसे चपरासी कहता है

की ३०० रुपये दो आपकी डिग्री आपके हाथ में १ घंटे के अंदर होगी | मैने

चपरासी की बात ना सुनकर अपने आप साइन करा कर वो डिग्री डिपार्टमेंट में

जमा कर दी | वहाँ से मुझे जवाब मिला की मुझे डिग्री ७-८ दिन के बाद

मिलेगी | वहाँ पर एक चपरासी ने कहा की अगर कुछ खर्च करो तो आपकी डिग्री १

घंटे के अंदर मैं आपको दे दूँगा |

इस तरह ये मेरा किसी सरकारी डिपार्टमेंट से पहली बार का अनुभव था | इससे

मुझे पता चला कि अगर तुम्हारे पास पैसे हैं तो तुम्हारे सारे काम आसानी

से होते जाएँगे और अगर तुम्हारे पास पैसे नही हैं तो तुम्हे धक्को के

अलावा कुछ नही मिलेगा |

---संजीव---

रविवार, 13 फ़रवरी 2011

बेबस इंसान

कितना बेबस है इंसान क़िस्मत के आगे
हर सपने टूट जाते हैं, हक़ीक़त के आगे
जिसने कभी किसी के आगे हाथ न फैलाया
वो भी हाथ फैलाता है गोलगप्पे वाले के आगे

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खुदी को कर बुलंद इतना चढ़ा वो जैसे तैसे
खुदा ने बंदे से खुद पूछा अबे अब उतरेगा कैसे ?